श्री सूर्य चालीसा

सूर्य चालीसा का पाठ
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सूर्य चालीसा का पाठ करने का अर्थ उस दिव्य शक्ति की प्राप्ति करना है जो हमें सूर्य देव से प्राप्त होती है। सूर्य चालीसा में भगवान सूर्य देव की महिमा और उनके विशेषताओं का वर्णन करती है। इसके द्वारा हम सूर्य देव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। सूर्य चालीसा को पढ़ने से हमें स्वास्थ्य, समृद्धि, शांति और सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए, सूर्य चालीसा का पाठ भारतीय परंपरा में बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके नियमित रूप से पाठ करने से हमें सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और हमारे जीवन में समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।

हिंदू धर्म में सूर्य को तेज, यश, तरक्की और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है. भगवान सूर्य की पूजा से जीवन में मानसिक और शारीरिक सुख बना रहता है. भारतीय परंपरा में प्रतिदिन सूर्य देव की पूजा और अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। और सूर्य चालीसा का पाठ करके सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार यदि सूर्य देव की कृपा हो तो व्‍यक्ति को जीवन में बड़ी सफलता मिलती है. वह आत्‍मविश्‍वास से भरपूर रहता है और उसमें नेतृत्‍व का गुण होता है. सूर्य की कृपा पाने के लिए सूर्य मंत्रों का जाप और सूर्य चालीसा का पाठ बहुत प्रभावी तरीका है.

सूर्य चालीसा पढ़ने के लाभ

Benefits of Reading Surya Chalisa

भगवान सूर्य चालीसा का पाठ करने से कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होता है, वरना कमजोर सूर्य जातक को ढेरों समस्‍याएं देता है. जैसे-कमजोर सेहत, आत्‍मविश्‍वास की कमी, मानहानि, असफलता आदि. वहीं कुंडली में सूर्य का मजबूत होना बहुत लाभ देता है. लिहाजा रोज सुबह स्‍नान करके सूर्य देव को अर्घ्‍य दें और फिर सूर्य चालीसा का पाठ करें, इससे बहुत लाभ होगा.

  1. सूर्य की पूजा करने और सूर्य चालीसा का पाठ करने से जातक दीर्घायु‌ होता है. उसकी सेहत अच्‍छी रहती है.
  2. यदि प्रतिदिन सूर्य चालीसा का पाठ न कर सकें तो कम से कम रविवार के दिन जरूर सूर्य चालीसा का पाठ करें.
  3. यदि कई बीमारियों, निराशा के शिकार हैं तो रोज सूर्य चालीसा का पाठ करें. इससे सेहत संबंधी समस्‍याएं दूर होती हैं और व्‍यक्ति निरोगी रहता है.
  4. सूर्य चालीसा का पाठ व्‍यक्ति में आत्‍मविश्‍वास, ऊर्जा और साहस का संचार करता है. इससे उसे कामों में सफलता मिलती है. सूर्य नेतृत्‍व क्षमता देते हैं. मजबूत सूर्य व्‍यक्ति को राजनीति में ऊंचा मुकाम दिलाता है. इसके अलावा भी किसी क्षेत्र में जाएं तो खूब तरक्‍की मिलती है.
  5. सूर्य चालीसा का पाठ ( Surya Chalisa ka Path ) करने से अकाल मृत्यु का खतरा दूर होता है.
  6. सूर्य चालीसा का नियमित पाठ करने वाले, अपने कामों पर समय से और पूरी ईमानदारी से पूरा करने वाले को खूब सफलता मिलती है. उसकी यश- कीर्ति बढ़ती है. समाज में मान सम्मान बढ़ता है.

श्री सूर्य देव चालीसा

Shri Surya Dev Chalisa

॥ दोहा ॥

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥

॥ चौपाई ॥

जय सविता जय जयति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर॥ 1॥

भानु पतंग मरीची भास्कर,
सविता हंस सुनूर विभाकर॥ 2॥

विवस्वान आदित्य विकर्तन,
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥ 3॥

अम्बरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ 4॥

सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि,
मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥5॥

अरुण सदृश सारथी मनोहर,
हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥6॥

मंडल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी॥7॥

उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरन्दर लज्जित होते॥8॥

मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥9॥

पूषा रवि आदित्य नाम लै,
हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥10॥

द्वादस नाम प्रेम सों गावैं,
मस्तक बारह बार नवावैं॥11॥

चार पदारथ जन सो पावै,
दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥12॥

नमस्कार को चमत्कार यह,
विधि हरिहर को कृपासार यह॥13॥

सेवै भानु तुमहिं मन लाई,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥14॥

बारह नाम उच्चारन करते,
सहस जनम के पातक टरते॥15॥

उपाख्यान जो करते तवजन,
रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥16॥

धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,
प्रबल मोह को फंद कटतु है॥17॥

अर्क शीश को रक्षा करते,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥18॥

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥19॥

भानु नासिका वासकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित॥20॥

ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥21॥

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,
तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥22॥

पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥23॥

युगल हाथ पर रक्षा कारन,
भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥24॥

बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमंह, रहत मन मुदभर॥25॥

जंघा गोपति सविता बासा,
गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥26॥

विवस्वान पद की रखवारी,
बाहर बसते नित तम हारी॥27॥

सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे॥28॥

अस जोजन अपने मन माहीं,
भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥29॥

दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,
जोजन याको मन मंह जापै॥30॥

अंधकार जग का जो हरता,
नव प्रकाश से आनन्द भरता॥31॥

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही,
कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥32॥

मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके॥33॥

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,
किया करत सुरमुनि नर सेवा॥34॥

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,
दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥35॥

परम धन्य सों नर तनधारी,
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥36॥

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥37॥

भानु उदय बैसाख गिनावै,
ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥38॥

यम भादों आश्विन हिमरेता,
कातिक होत दिवाकर नेता॥39॥

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं,
पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥40

॥ दोहा ॥

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥


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