Sanatan Dharam
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क्या है सनातन धर्म ( What is Sanatan Dharma)

सनातन धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। परम्परगत वैदिक धर्म जिसमें परमात्मा को साकार और निराकार दोनों रूपों में पूजा जाता है। ये वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय, और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में है।

हालाँकि इसमें कई देवी, देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। ये धर्म अपने आप में इतना विशाल है कि इसमें से समय-समय पर विभिन्न धर्म निकलते रहे, कुछ पुरानी परम्पराऐं टूटती रहीं और कुछ नई जुड़ती रहीं, कुछ पुरानी मान्यताएँ ज्यों की त्यों रहीं तो कुछ मान्यताएँ इसमें समाती रहीं। कुछ मिला, कुछ पुराना छूटता गया, कुछ पुराना यूँ ही रहा तो कुछ नया जुड़ता गया।

ऋग्वेद के अनुसार ( According to Rigveda )

“यह पथ सनातन है। समस्त देवता और मनुष्य इसी मार्ग से पैदा हुए हैं तथा प्रगति की है।

हे मनुष्यों आप अपने उत्पन्न होने की आधाररूपा अपनी माता को विनष्ट न करें। ”

—ऋग्वेद-3-18-1

सनातन का अर्थ ( Meaning of Sanatan )

सनातन का अर्थ है – ‘शाश्वत’ या ‘हमेशा बना रहने वाला’।, सनातन अर्थात जो सदा से है, जो सदा रहेगा, जिसका अंत नहीं है और जिसका कोई आरंभ नहीं है वही सनातन है।

सृष्टि का आरंभ ( Beginning of Creation )

परमपिता परमात्मा ने ही सब मनुष्यों के कल्याण के लिए वेदों का प्रकाश, सृष्टि के आरंभ में किया। जैसे जब हम नया मोबाइल लाते हैं तो साथ में एक दिग्दर्शिका मिलती है, कि इसे यहाँ पर रखें, इस प्रकार से बरतें, अमुक स्थान पर न ले जायें, अमुक चीज़ के साथ न रखें, आदि।

उसी प्रकार जब उस परमपिता ने हमें ये मानव तन दिए, तथा ये संपूर्ण सृष्टि हमें रच कर दी, तब क्या उसने हमें यूं ही बिना किसी ज्ञान व बिना किसी निर्देशों के भटकने को छोड़ दिया? जी नहीं, उसने हमें साथ में एक दिग्दर्शिका दी, कि इस सृष्टि को कैसे बर्तें, क्या करें, ये तन से क्या करें, इसे कहाँ लेकर जायें, मन से क्या विचारें, नेत्रों से क्या देखें, कानों से क्या सुनें, हाथों से क्या करें आदि। उसी का नाम वेद है।

हिन्दू धर्म ( Hindu Religion )

विश्व में केवल हिन्दू धर्म ही ज्ञान पर आधारित धर्म है, बाकी सब तो किसी एक व्‍यक्ति के द्वारा प्रतिपादित किये गये हैं। इसलिए हिन्दू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है और उसकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती है, एक मात्र हिंदू धर्म ही ऐसा धर्म है, जो समय-समय पर अपने नियमों की समीक्षा करके उनमें सुधार करता रहा है। हिन्दू धर्म एक खुला धर्म है जो विचार से नहीं अपितु विवेक से विकसित हुआ है।

इसके विपरीत अन्य धर्म चाहे वह इस्लाम हो चाहे ईसाई या कोई अन्य, सभी बंद धर्म है, जो एक व्यक्ति मात्र के विचारों पर आधारित है और जो यह मानकर चलते हैं कि समय अपरिवर्तित रहता है और व्यक्ति का विवेक भी। इन धर्मों में विचारों के विकास का कोई महत्व नहीं है। यही कारण है कि इन धर्मों में विशेष आग्रह अथवा वैचारिक कट्टरता पाई जाती है।

हिंदू धर्म  क्या है ( What is Hinduism )

हिंदू धर्म एक प्राचीन धर्म है जो भारत में उत्पन्न हुआ था. यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, जिसमें लगभग 1.2 अरब अनुयायी हैं. हिंदू धर्म एक एकेश्वरवादी धर्म है, जो एक ही ईश्वर में विश्वास करता है. हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन ये सभी एक ही ईश्वर के अलग-अलग रूप हैं. हिंदू धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है, और इसकी कोई एक धार्मिक पुस्तक नहीं है. हिंदू धर्म एक समग्र धर्म है, जो जीवन के सभी पहलुओं को शामिल करता है.

हिंदू धर्म में आध्यात्मिकता, दर्शन, कर्मकांड, और जीवन जीने का तरीका शामिल है. हिंदू धर्म के अनुयायी शांति, प्रेम, और करुणा के सिद्धांतों का पालन करते हैं. वे सभी जीवों के प्रति दयालु और समभावपूर्ण होते हैं. हिंदू धर्म एक जीवंत धर्म है, जो लगातार विकसित हो रहा है. यह एक धर्म है जो लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान, शांति, और समृद्धि प्रदान करता है.

वेद क्या है ( What is Veda )

वेद का अर्थ है ज्ञान। वेदों में क्या है ? वेदों में कोई कथा कहानी नहीं है। वेद में तिनके से लेकर परमेश्वर पर्यन्त वह सम्पूर्ण मूल ज्ञान विद्यमान है, जो मनुष्यों के जीवन में आवश्यक है।

मैं कौन हूँ ? मुझमें ऐसा क्या है, जिसमें “मैं” की भावना है? मेरे हाथ, मेरे पैर, मेरा सिर, मेरा शरीर, पर मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आया हूँ? मेरा तन तो यहीं रहेगा, तो मैं कहाँ जाऊंगा, परमात्मा क्या करता है? मैं यहाँ क्या करूँ ? मेरा लक्ष्य क्या है ? मुझे यहाँ क्यूँ भेजा गया?

वेद दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ है। वेद ईश्वर द्वारा ऋषियों को सुनाए गए ज्ञान पर आधारित है इसीलिए इसे श्रुति कहा गया है। सामान्य भाषा में वेद का अर्थ होता है ज्ञान। वेद पुरातन ज्ञान विज्ञान का अथाह भंडार है।

वैदिक ऋषि देवी और देवताओं से कहीं अधिक ‘ब्रह्म’ को सर्वोच्च सत्ता मानते थे। ब्रह्म अर्थात ईश्‍वर ही उनकी दृष्टि में सर्वोच्च है। वेद एकेश्‍वरवाद के समर्थक है लेकिन वे देवी और देवताओं सहित प्रकृति के प्रति सम्मान और प्रेम को भी सिखाते हैं। ऋषियों अनुसार हम सभी का जीवन सभी से जुड़ा हुआ है। सभी उस ब्रह्म की ही शक्तियां हैं।

इसमें मानव की हर समस्या का समाधान है। वेदों में ब्रह्म (ईश्वर), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है।

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्म सनातनम।
दुदोह यज्ञसिध्यर्थमृगयु : समलक्षणम्॥
( मनु स्मृति )

शतपथ ब्राह्मण के श्लोक के अनुसार अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ने तपस्या की और ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को प्राप्त किया। प्रथम तीन वेदों को अग्नि, वायु, सूर्य (आदित्य), से जोड़ा जाता है और संभवत: अथर्वदेव को अंगिरा से उत्पन्न माना जाता है।

एक ग्रंथ के अनुसार ब्रह्माजी के चारों मुख से वेदों की उत्पत्ति हुई। वेद सबसे प्राचीनतम पुस्तक हैं इसलिए किसी व्यक्ति या स्थान का नाम वेदों पर से रखा जाना स्वाभाविक है। जैसे आज भी रामायण, महाभारत इत्यादि में आए शब्दों से मनुष्यों और स्थान आदि का नामकरण किया जाता है।

इन सबका उत्तर तो केवल वेदों में ही मिलेगा। रामायण व भागवत व महाभारत आदि तो ऐतिहासिक घटनाएं है, जिनसे हमें सीख लेनी चाहिए और इन जैसे महापुरुषों के दिखाए सन्मार्ग पर चलना चाहिए।

वेद कितने प्रकार के होते हैं ( How Many Types of Vedas are There)

ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग-स्थिति, यजु-रूपांतरण, साम-गति‍शील और अथर्व-जड़। ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। इन्ही के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।

  1. ऋग्वेद ( Rigveda )
  2. यजुर्वेद ( Yajurveda )
  3. सामवेद ( Samaveda )
  4. अथर्ववेद ( Atharvaveda )

कुल देवी और देवता : प्राकृतिक शक्तियों सहित कुल देवी-देवता 40 हैं। कुछ देवी और देवताओं के नाम चारों वेदों में मिलते हैं।

वेदों के उपवेद : हिन्दू धर्म में चार मुख्य वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्वेवेद हैं। इन वेदों से निकली हुई शाखाओं रूपी वेदज्ञान को उपवेद कहा जाता है। वैसे उपवेद के वर्गीकरण को लेकर विभिन्न विद्वानों के मत अलग-अलग हैं, लेकिन इनमें ये चार सबसे उपयुक्त हैं। ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का स्थापत्यवेद।

ऋग्वेद ( Rigveda )

ऋग्वेद संसार का सबसे प्राचीनतम धर्मग्रन्थ है। वेदों में सर्वप्रथम ऋग्वेद का निर्माण हुआ। यह पद्यात्मक है। यजुर्वेद गद्यमय है और सामवेद गीतात्मक है। ऋग्वेद में मण्डल 10 हैं, 1028 सूक्त हैं और ऋग्वेद में वर्तमान समय में 10600 मंत्र है। ऋग्वेद में  5 शाखायें हैं – शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन।

ऋग्वेद के दशम मण्डल में औषधि सूक्त हैं। इसके प्रणेता अर्थशास्त्र ऋषि हैं। इसमें औषधियों की संख्या 125 के लगभग निर्दिष्ट की गई है जो कि 107 स्थानों पर पायी जाती है। औषधि में सोम का विशेष वर्णन है। ऋग्वेद में च्यवन ऋषि को पुनः युवा करने का कथानक भी उद्धृत है और औषधियों से रोगों का नाश करना भी समाविष्ट है । इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा एवं हवन द्वारा चिकित्सा का समावेश है।

ऋग्वेद में – अग्नि, वायु, मित्रावरुण, अश्‍विनी कुमार, इंद्र, विश्‍वदेवा, सरस्वती, मरुत, प्रजापति, वरुण, उषा, पूषा, सूर्य, वैश्वानर, ऋभुगण, नद्य: रुद्र और सविता।

ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है

  • यह सबसे प्राचीनतम वेद माना जाता है।
  • ऋग्वेद के कई सूक्तों में विभिन्न वैदिक देवताओं की स्तुति करने वाले मंत्र हैं, यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्त्रोतों की प्रधानता है।
  • इस वेद में 33 कोटि देवी-देवताओं का उल्लेख है। ऋग्वेद में सूर्या, उषा तथा अदिति जैसी देवियों का भी वर्णन मिलता है।
  • ऋग्वेद में कुल दस मण्डल हैं और उनमें 1028 सूक्त हैं और कुल 10,580 ऋचाएँ हैं।
  • इसके दस मण्डलों में कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ मण्डल बड़े हैं।
  • प्रथम और अन्तिम मण्डल, दोनों ही समान रूप से बड़े हैं। उनमें सूक्तों की संख्या भी 191 है।
  • दूसरे मण्डल से सातवें मण्डल तक का अंश ऋग्वेद का श्रेष्ठ भाग है, उसका हृदय है।
  • आठवें मण्डल और प्रथम मण्डल के प्रारम्भिक पचास सूक्तों में समानता है।

ऋग्वेद में दो प्रकार के विभाग मिलते हैं

अष्टक क्रम – इसमें समस्त ग्रंथ आठ अष्टकों तथा प्रत्येक अष्टक आठ अध्यायों में विभाजित है। प्रत्येक अध्याय वर्गो में विभक्त है। समस्त वर्गो की संख्या 2006 है।
मण्डलक्रम – इस क्रम में समस्त ग्रन्थ 10 मण्डलों में विभाजित है। मण्डल अनुवाक, अनुवाक सूक्त तथा सूक्त मंत्र या ॠचाओं में विभाजित है। दशों मण्डलों में 85 अनुवाक, 1028 सूक्त हैं। इनके अतिरिक्त 11 बालखिल्य सूक्त हैं। ऋग्वेद के समस्य सूक्तों के ऋचाओं (मंत्रों) की संख्या 10600 है।

सूक्तों के पुरुष रचयिताओं में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज और वसिष्ठ तथा स्त्री रचयिताओं में लोपामुद्रा, घोषा, अपाला, विश्वरा, सिकता, शचीपौलोमी और कक्षावृत्ति प्रमुख है। इनमें लोपामुद्रा प्रमुख थी। वह क्षत्रीय वर्ण की थी किन्तु उनकी शादी अगस्त्य ऋषि से हुई थी। ऋग्वेद के दूसरे एवं सातवें मण्डल की ऋचायें सर्वाधिक प्राचीन हैं, जबकि पहला एवं दसवां मण्डल अन्त में जोड़ा गया है। ऋग्वेद के आठवें मण्डल में मिली हस्तलिखित प्रतियों के परिशिष्ट को ‘खिल‘ कहा गया है।

यजुर्वेद ( Yajurveda )

यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है। ‘यजुष’ शब्द का अर्थ है- ‘यज्ञ’। यर्जुवेद मूलतः कर्मकाण्ड ग्रन्थ है।  इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं। ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है – इसमें ऋग्वेद के 663 मंत्र पाए जाते हैं।

यजुर्वेद में : सविता, यज्ञ, विष्णु, अग्नि, प्रजापति, इंद्र, वायु, विद्युत, धौ, द्यावा, ब्रह्मस्पति, मित्रावरुण, पितर, पृथ्वी।

इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य मन्त्र हैं, यह वेद मुख्यतः क्षत्रियों के लिये होता है ।

यजुर्वेद के दो भाग हैं

कृष्ण यजुर्वेद – वैशम्पायन ऋषि का सम्बन्ध कृष्ण से है । कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखायें है।

  1. तैत्तिरीय,
  2. मैत्रायणी,
  3. कठ और
  4. कपिष्ठल

शुक्ल यजुर्वेद  – याज्ञवल्क्य ऋषि का सम्बन्ध शुक्ल से है। शुक्ल की दो शाखायें हैं । इसमें 40 अध्याय हैं । यजुर्वेद के एक मन्त्र में ‘ब्रीहिधान्यों’ का वर्णन प्राप्त होता है । इसके अलावा, दिव्य वैद्य एवं कृषि विज्ञान का भी विषय समाहित है। इसकी मुख्य शाखायें है-

  1. माध्यन्दिन
  2. काण्व

यजुर्वेद की अन्य विशेषताएँ

  • यजुर्वेद गद्यात्मक हैं।
  • यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘यजुस’ कहा जाता है।
  • यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ऋग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।
  • इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं।
  • यजुर्वेद में यज्ञों और हवनों के नियम और विधान हैं।
  • यह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है।
  • यदि ऋग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी तो यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई थी।
  • इस ग्रन्थ से आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है।
  • वर्ण-व्यवस्था तथा वर्णाश्रम की झाँकी भी इसमें है।
  • यजुर्वेद में यज्ञों और कर्मकाण्ड का प्रधान है।

सामवेद ( Samaveda )

‘साम‘ शब्द का अर्थ है ‘गान‘। सामवेद में गेय छंदों की अधिकता है जिनका गान यज्ञों के समय होता था। 1824 मन्त्रों कें इस वेद में 75 मन्त्रों को छोड़कर शेष सब मन्त्र ऋग्वेद से ही संकलित हैं। इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है। इसमें सविता, अग्नि और इन्द्र देवताओं का प्राधान्य है। इसमें यज्ञ में गाने के लिये संगीतमय मन्त्र हैं, यह वेद मुख्यतः गन्धर्व लोगों के लिये होता है । इसमें मुख्य 3 शाखायें हैं, 75 ऋचायें हैं और विशेषकर संगीत शास्त्र का समावेश किया गया है ।

सामदेव की तीन महत्त्वपूर्ण शाखायें हैं

  1. कौथुमीय,
  2. जैमिनीय एवं
  3. राणायनीय।

सामवेद में : अग्नि, वायु, पूषा, विश्‍वदेवा, सविता, पवमान, अदिति, उषा, मरुत, अश्विनी, इंद्राग्नि, द्यावापृथिवी, सोम, वरुण, सूर्य, गौ:, मित्रावरुण।

अथर्ववेद ( Atharvaveda )

इसमें जादू, चमत्कार, आरोग्य, यज्ञ के लिये मन्त्र हैं, यह वेद मुख्यतः व्यापारियों के लिये होता है । इसमें 20 काण्ड हैं । अथर्ववेद में आठ खण्ड आते हैं जिनमें भेषज वेद एवं धातु वेद ये दो नाम स्पष्ट प्राप्त हैं।

अथर्ववेद में – वाचस्पति, पर्जन्य, आप:, इंद्र, ब्रहस्पति, पूषा, विद्युत, यम, वरुण, सोम, सूर्य, आशपाल, पृथ्‍वी, विश्‍वेदेवा, हरिण्यम:, ब्रह्म, गंधर्व, अग्नि, प्राण, वायु, चंद्र, मरुत, मित्रावरुण, आदित्य।

अथर्ववेद के महत्त्वपूर्ण विषय हैं

  • ब्रह्मज्ञान
  • औषधि प्रयोग
  • रोग निवारण
  • जन्त्र-तन्त्र
  • टोना-टोटका आदि।

धर्मग्रंथ

हिंदुओं का धर्म ग्रंथ क्या है? विद्वानों अनुसार ‘वेद’ ही है हिंदुओं के धर्मग्रंथ। वेदों में दुनिया की हर बातें हैं। वेदों में धर्म, योग, विज्ञान, जीवन, समाज और ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पालन और संहार का विस्तृत उल्लेख है। वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों का सार है गीता। सार का अर्थ होता है संक्षिप्त।